۱۳۸۹ بهمن ۱۶, شنبه

ناصر عبداللهی | Naser Abdollahi | Насер Абдоллахи

ناصر عبدالهی در دهمین روز دی ماه سال ۱۳۴۹ در محله مسجد بلال شهر بندرعباس دیده به گیتی گشود. پدرش عبدالرحمن عبدالهی کارگر بازنشسته شرکت ملی بود و مادرش مهرنگاربندری نیاییاستان هرمزگان آغاز کرد. خانه دار است. از ۱۳ سالگی به موسیقی علاقمند شد. فعالیت‌های هنری خود را از سال‌های نوجوانی در صدا و سیما و حوزه هنری سازمان تبلیغات اسلامی استان هرمزگان آغاز کرد. وی کار حرفه‌ای را به طور جدی از سال ۱۳۷۴ خورشیدی آغاز کرد. در سال ۱۳۷۵ همراه با همسرش به تهران آمد. محمدعلی بهمنی شاعر هرمزگانی و دوست نزدیکش ، وی را به انتشارات دارینوش معرفی کرد. پس از آن آلبوم‌های ناصر را این انتشارات ضبط و منتشر کرد. ناصرعبدالهی در سوم آذرماه ۱۳۸۵ در بندرعباس به دلایل نامشخصی بی هوش و به کما رفت و پس از گذراندن ۲۷ روز در کما (بیمارستان هاشمی نژاد تهران) سر انجام در یک روز زمستانی ، در ۲۹ آذر ۱۳۸۵ در ۳۶ سالگی اش شمع وجودش خاموش گشت. عبدالهی در ترانه‌های خود از کسی تقلید نمی‌کرد و صدایی منحصر به فرد داشت . بیشتر اشعار ترانه‌های او از سروده‌های محمدعلی بهمنی بود. در کار موسیقی به گفته خود وی تحت تأثیر سبک موسیقی ابراهیم منصفی بود. طوری که در سال‌های آغازین کار هنری ترانه‌های منصفی را بازخوانی می‌کرد. عبدالهی همچنین با موسیقی غربی و ایرانی آشنا بود و به آثار محمدرضا شجریان و علیرضا افتخاری علاقه بسیاری داشت.


برگرفته از:  www.fa.wikipedia.org


نام ترانه: شیوه ی ما                    آوازه خوان: ناصر عبداللهی           آهنگساز: -
تایپ متن: آرشام آریامنش              ویراستار: آرشام آریامنش               فرستنده: آرشام آریامنش
نتوان گفت که این قافله وا می ماند
خسته و خفته  از این خیل جدا می ماند
این ره این نیست که از خاطره اش یاد کنیم
این سفر  همره تاریخ به جا می ماند
این ره این نیست که از خاطره اش یاد کنیم
این سفر  همره تاریخ به جا می ماند
دانه و دام در این راه فراوان اما
مرغ دلسیر ز هر دام رها می ماند
می رسی آخر و افسانه وا ماندن ما
همچو داغی به دل حادثه ها می ماند
بی صداتر ز سکوتیم
بی صداتر ز سکوتیم
ولی گاه خروش نغمه ماست که در گوش شما می ماند
بروید ای دلتان نیمه که در شیوه ما
مرد با هر چه ستم هر چه بلا می ماند
بروید ای دلتان نیمه که در شیوه ما
مرد با هر چه ستم هر چه بلا می ماند
Nâme tarâne: Shiveye ma
Âvâze xân: Naser Abdollahi
Âhangsâz: -
Tâype matn: Âršâm Âriyâmaneš
Virâstâr: Âršâm Âriyâmaneš
Ferestande: Âršâm Âriyâmaneš


Song's Name:
Singer: Naser Abdollahi
Compositor: -
Text Typing: Arsham Ariamanesh
Editor: - 
Sender: Arsham Ariamanesh 
Translation from Persian:


Название песни: 
Певиц: Насер Абдоллахи
Композитор: -
Набор текста: Томашевская Ю.Н.
Редактор: Томашевская Ю.Н. 
Отправитель: Аршам Арияманеш 
Перевод с персидского языка: Шпак П.Б. и Арияманеш А.

Невозможно сказать, что этот караван застрянет
Уставшие и спящие, путники отстали от каравана
Вот так путешествие это мы в памяти своей не сохраним
Путешествие это свое место в истории займет
На этом пути много зерна и ловушек
Но, мудрая птица в ловушку не попадет
Мы подходим к концу истории нашей
И остановка наша навсегда клеймом в сердце событий застынет
Мы тише, чем молчание
Мы тише, чем молчание
Но во время рева [и рыка], только тихий напев остается в наших ушах
Эй вы, у кого пол-сердца, идите дорогой нашей
И только насилие и боль мужчине остается


Вольный перевод с персидского языка:Томашевская Ю.Н.
Набор текста: Томашевская Ю.Н.

Никто бы не поверил никогда,
Что этот караван застрянет по дороге. 
Но истомленным путникам была нужна,
Хоть небольшая передышка в том походе.
Нет, не таким запомним этот путь,
История все по местам расставит пусть!
Да, сколько искушений и соблазнов было!
Но, птица мудрая тем и сильна,
Что знает западню из далека!
Вот. близился уже конец пути,
Но, остановка наша, не меняясь,
Клеймом пылает и болит,
Событий сердцем оставаясь.
Мы тише тишины,
Мы тише тишины...
Но, когда шум ревущий настигает,
Мелодии знакомой перелив,
В нас непрестанно пребывает.
Эй, вы, что с сердца половиной!
Дерзните дорогой нашей испытать себя!
Ведь, что достанется мужчине,
Беда, насилие, война...

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